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<ाओं कलाओं, सांस्कृतिक परम्पराजन्य विरासत को अक्षुण्ण रखते हुए उनके पोषण, संरक्षण, प्रकाशन एवं विस्तार हेतु कटिबद्ध है। मुख्यालय सहित सम्पूर्ण भारतवर्ष में इसके तेरह परिसरों तथा गुरुकुलस्तर से राष्ट्रस्तर के लक्षाधिक छात्रों को विभिन्न शास्त्रीय परंपराओं तथा कलाओं में प्रशिक्षित किया जा रहा है। इसके साथ ही समसामयिक युगानुरूप उनके कला-कौशल के सतत विकास की ओर भी ध्यान दिया जारहा है। >
इसका प्रमुख कार्य इस प्रकार है- 1. शोध एवं विमर्श हेतु मानक मार्गदर्शन 2. भारतीय प्राचीन शास्त्रों का संरक्षण एवं सरल संस्कृत के माध्यम से मानक ग्रन्थों का प्रकाशन। 3. संस्कृत के प्राचीन एवं अर्वाचीन ग्रन्थों, पुरालिपियों का संरक्षण एवं प्रकाशन 4. सरल संस्कृत माध्यम से विभिन्न ग्रन्थशृङ्खलाओं यथा- सरलसंस्कृतेन सङ्क्षेपग्रन्थहारः का प्रकाशन 5. भविष्यगत योजनाओं यथा भूमिकासङ्ग्रहमाला, दीक्षापुस्तकयोजना तथा वाङ्मयप्रवेशिका आदि का क्रियान्वयन 6. भारतीय ज्ञानपरम्परा सम्बद्ध विषयों यथा दर्शन, व्याकरण, संगीत, राजनीति, चिकित्सा, वास्तुकला, धातु विज्ञान, नाटक आदि को आधुनिक उपकरणों और तकनीकों की सहायता से विश्वजनमानस तक पहुंचाना। 7. प्राचीन भाषाओं कलाओं, सांस्कृतिक परम्पराजन्य विरासत को अक्षुण्ण रखते हुए उनके पोषण, संरक्षण, प्रकाशन एवं विस्तार